Thursday, January 21, 2010

कविता संग्रह- शोर के पड़ोस में चुप सी नदी- मनीष मिश्र

2010 में हिन्द-युग्म ने अपनी गतिविधियों में एक और अध्याय जोड़ा है। लेकिन यह अध्याय इच वर्चुएल स्पेस से बाहर तैयार हुआ है। इस वर्ष हिन्द-युग्म ने अपने मुद्रित प्रकाशन की शुरूआत की है, जिसके अंतर्गत 5 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है।


पूरा कवर देखने के लिए ऊपर के चित्र पर क्लिक करें
'शोर के पड़ोस में चुप सी नदी' युवा कवि मनीष मिश्र का कविता संकलन है। हिन्द-युग्म के पाठक मनीष मिश्र की कविताओं से परिचित हैं। नये पाठक निम्नलिखित लिंकों से मनीष की कविताओं का रसास्वादन कर सकते हैं-


डॉ मनीष मिश्र पिछले दो दशकों से समकालीन प्रगितिशील हिंदी कविता के सतत सक्रिय और संभावनापूर्ण कवि हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं सहित समकालीन भारतीय साहित्य (ज्ञानपीठ) में कवि की रचनाओं का अनोखा संसार सामने आया है। निजी जीवन के रागात्मक लगावों को कविताओं में प्रमुखता दी गयी है। ये कविताएँ ना जीतने की शर्त लगाती हैं, ना हारने का मातम। ज्यादातर कविताएँ रिश्तों के इर्द-गिर्द बुनी गयी हैं- लेकिन उनकी जमीन विलग है। ये जिंदगी को ताकती हुई कविताएँ हैं। ये कविताएँ शिल्प के अद्‍भुत विन्यास में लिपटी दिखती हैं। कवि के रचना-संसार में निराशा का वीतराग है तो आशा का जगमग पड़ोस भी।


३ सितम्बर को फतेहपुर (उ॰प्र॰) में जन्मे मनीष मिश्र पेशे से वैज्ञानिक हैं और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के लखनऊ स्थित संस्थान में जैव-तकनीक पर शोध करते हैं। ८० से अधिक शोध-पत्र एवं विज्ञान पर तीन पुस्तकें प्रकाशित कर चुके हैं। आपका पहला संग्रह ‘हमें चाहिए खिलखिलाहटों की दो चार जड़ें’ २००१ में प्रकाशित हुआ था। डॉ मनीष मिश्र के अनुभव की जमीन उनकी कविताओं की तरह ही विविध है।

पुस्तक की प्रति सुरक्षित करवायें-

सजिल्द संस्करण (हार्ड बाइंड)
मुद्रित मूल्य- रु 100
हिन्द-युग्म के पाठकों के लिए- रु 70

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पुस्तकप्रेमी का कहना है कि :

anwar suhail का कहना है कि -

hindi me ebook is tarah se dekh kar achcha laga

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