लेखक - अनुराग शर्मा और साथी (वैशाली सरल, विभा दत्त, अतुल शर्मा, पंकज गुप्ता, प्रदीप मनोरिया)
समीक्षक - पंकज सुबीर
पिट्सबर्ग अमेरिका में रहने वाले भारतीय कवि श्री अनुराग शर्मा का नाम वैसे तो साहित्य जगत और नेट जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है । किन्तु फिर भी यदि उनकी कविताओं के माध्यम से उनको और जानना हो तो उनके काव्य संग्रह पतझड़, सावन, वसंत, बहार को पढ़ना होगा । ये काव्य संग्रह छ: कवियों वैशाली सरल, विभा दत्त, अतुल शर्मा, पंकज गुप्ता, प्रदीप मनोरिया और अनुराग शर्मा की कविताओं का संकलन है । यदि अनुराग जी की कविताओं की बात की जाये तो उन कविताओं में एक स्थायी स्वर है और वो स्वर है सेडनेस का उदासी का । वैसे भी उदासी को कविता का स्थायी भाव माना जाता है । अनुराग जी की सारी कविताओं में एक टीस है, ये टीस अलग अलग जगहों पर अलग अलग चेहरे लगा कर कविताओं में से झांकती दिखाई देती है । टीस नाम की उनकी एक कविता भी इस संग्रह में है ’’एक टीस सी उठती है, रात भर नींद मुझसे आंख मिचौली करती है ।‘’
अनुराग जी की कविताओं की एक विशेषता ये है कि उनकी छंदमुक्त कविताएं उनकी छंदबद्ध कविताओं की तुलना में अधिक प्रवाहमान हैं। जैसे एक कविता है ‘जब हम साथ चल रहे थे तक एकाकीपन की कल्पना भी कर जाती थी उदास’ ये कविता विशुद्ध रूप से एकाकीपन की कविता है, इसमें मन के वीतरागीपन की झलक शब्दों में साफ दिखाई दे रही है । विरह एक ऐसी अवस्था होती है जो सबसे ज्यादा प्रेरक होती है काव्य के सृजन के लिये। विशेषकर अनुराग जी के संदर्भ में तो ये और भी सटीक लगता है क्योंकि उनकी कविताओं की पंक्तियों में वो ‘तुम’ हर कहीं नजर आता है। ‘तुम’ जो कि हर विरह का कारण होता है। ‘तुम’ जो कि हर बार काव्य सृजन का एक मुख्य हेतु हो जाता है। ‘घर सारा ही तुम ले गये, कुछ तिनके ही बस फेंक गये, उनको ही चुनता रहता हूं, बीते पल बुनता रहता हूं ‘ स्मृतियां, सुधियां, यादें कितने ही नाम दे लो लेकिन बात तो वही है। अनुराग जी की कविताओं जब भी ‘तुम’ आता है तो शब्दों में से छलकते हुए आंसुओं के कतरे साफ दिखाई देते हैं। साफ नजर आता है कि शब्द उसांसें भर रहे हैं, मानो गर्मियों की एक थमी हुई शाम में बहुत सहमी हुई सी मद्धम हवा चल रही हो । जब हार जाते हैं तो कह उठते हैं अपने ‘तुम’ से ‘ कुछेक दिन और यूं ही मुझे अकेले रहने दो’। अकेले रहने दो से क्या अभिप्राय है कवि का। किसके साथ अकेले रहना चाहता है कवि। कुछ नहीं कुछ नहीं बस एक मौन सी उदासी के साथ, जिस उदासी में और कुछ न हो बस नीरवता हो, इतनी नीरवता कि अपनी सांसों की आवाज को भी सुना जा सके और आंखों से गिरते हुए आंसुओं की ध्वनि भी सुनाई दे।
एक कविता में एक नाम भी आया है जो निश्चित रूप से उस ‘तुम’ का नहीं हो सकता क्योंकि कोई भी कवि अपनी उस ‘तुम’ को कभी भी सार्वजनिक नहीं करता, उसे वो अपने दिल के किसी कोने में इस प्रकार से छुपा देता है कि आंखों से झांक कर उसका पता न लगाया जा सके। "पतझड़ सावन वसंत बहार" संग्रह में अनुराग जी ने जो उदासी का माहौल रचा है उसे पढ़ कर ही ज्यादा समझा जा सकता है। क्योंकि उदासी सुनने की चीज नहीं है वो तो महसूसने की चीज है सो इसे पढ़ कर महसूस करें।
मुद्रित मूल्य- 250
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