Wednesday, December 16, 2009

कहानी संग्रह- कांधा - संगीता सेठी

‘यह कोई कहानी नहीं है जिसे पढ़कर आप एक तरफ रख दें, यह एक हक़ीक़त है, एक सच्चाई….एक यथार्थ है जिसे बहुत निकट से देखा है, मैंने महसूस किया है और भोगा भी है।…’

इस संग्रह की एक कहानी निर्णय की ये आरंभिक पंक्तियाँ लेखिका के पूरे रचना कर्म और उनकी प्रतिबद्धता को स्पष्ट कर देती हैं। संगीता सेठी की विशेषता उनकी यही बेलाग अभिव्यक्तियाँ हैं जो इस संग्रह की हर रचना में मौज़ूद हैं। संगीता हिन्दी के नारी लेखन की उस परम्परा में है जो अपनी स्थितियों के प्रति सजग तो है ही, एक अर्द्ध सामंती पितृसत्तात्मक समाज में नारी की अस्मिता और सम्मान के लिए सदा संघर्षशील नज़र आती है। लेखन की भूमिका प्राथमिक तौर और अंततः भी अपने समाज की दैनंदिन की छोटी-छोटी घटनाओं को समझना और अभिव्यक्त करना तो है ही, इससे भी बड़ी बात यह है कि ऐसी दृष्टि देना, जो हमें आगे की ओर ले जाए। साहित्य का काम जो है उसका उत्सव मनाना मात्र नहीं है बल्कि जो होना चाहिए उसकी समझ और ललक पेदा करना भी है।

संगीता की कहानियाँ समकालीन सच की बेलाग अभिव्यक्तियाँ हैं और स्त्री के दैनंदिन जीवन की आम घटनाओं को अपनी रचनात्मकता से विशिष्ट अंदाज़ में प्रस्तुत करती हैं। आम जीवन के छोटे-छोटे लगनेवाले प्रसंगों का विवेचन कर अपनी रचनात्मकता से वह उन्हें बेचैन कर देने वाली कहानियों में बदल देती हैं। जीवन की तो छोड़िये, मृत्युपरांत तक के कर्मकांडों में स्त्री की उपेक्षा से लेकर आँगन के नीम को बचाने के संघर्ष तक की कहानियाँ बतलाती हैं कि लेखिका जीवन के प्रति किस तरह से सचेत है और किस तरह से वह स्त्री-पुरूष असामनता के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करती है। उन की रचनाओं में एक सजग कथाकार की ऊर्जा और प्रतिबद्धता है।

--पंकज बिष्ट, वरिष्ठ कथाकार, चर्चित पत्रिका ‘समयांतर’ के संपादक

संगीता सेठी का कहानी संकलन महीन और गहन संवेदनाओं की मंजूषा है। पारिवारिक परिवेश से कहानी के बीज़ों को लेने की उनकी क्षमता सराहनीय है। कहानी उनके लिए बौद्धिक कसरत नहीं है। मार्मिक मुहूर्तों की तलाश में वे अत्यंत निपुण हैं। हृदय तत्व को आज की कहानी में पुनः प्रतिष्ठा मिलना एक आनंदपूर्ण अनुभव है। कांधा संकलन हिन्दी के महिला लेखन की क्रांति का नया परिचायक है। वेलेंटाइन डे परंपरागत प्रेम कहानी से अलग पहचान बनाती है। आज के प्रेम में भी समर्पण की भावना के चलते अलभ्य के प्रति आकर्षण और उसका ज़ादू कहकर संगीता ने मोबाइल में कुछ अनुभूत सत्यों को अभिव्यक्ति दी है। वह जी का जंजाल कैसे बन जाता है इसका वर्णन कहानीकार ने कलात्मक चारुता से किया है।

कांधा की भावभूमि अनोखी है। स्त्री पक्ष की आवाज़ गौण नहीं है। मां के मृत शरीर पर बेटी को हाथ लगाने नहीं दिया जाता है। इस कहानी में दुःख और आक्रोश के स्फुलिंग घुल-मिल जाते हैं। संगीता की मौलिक सृजन प्रतिभा यहाँ उभर आती है। कल्याण भूमि, तर्पण, निर्णय, बेटी होने का दर्द, बुआजी जैसी कहानियों में भी गहन संवेदना मिलती है।

--डॉ॰ आरसू, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कालीकट विश्वविद्यालय, केरल

मुद्रित मूल्य- 95